मेरठ में इंसानियत शर्मसार: बेगम पुल पर सुबह से पड़ा था बेसुध शख्स, दो थानों के 'सीमा विवाद' में फंसी जिंदगी!
सदर और लालकुर्ती थाने की खींचतान में अटका रेस्क्यू, नागरिक का आरोप- 'एक जान की कोई कीमत नहीं?'
May 21, 2025, 14:14 IST
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मेरठ, 21 मई 2025: मेरठ के सबसे व्यस्त इलाकों में से एक बेगम पुल मुख्य बाजार में आज पुलिस और प्रशासन की संवेदनहीनता का एक बेहद शर्मनाक वाकया सामने आया है। सुबह से एक व्यक्ति डिवाइडर पर अचेत अवस्था में पड़ा रहा, लेकिन थाना सदर और थाना लालकुर्ती के बीच के सीमा विवाद के चलते उसे घंटों तक कोई मदद नहीं मिल सकी। इस घटना ने शहर में इंसानियत और कानून-व्यवस्था दोनों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।READ ALSO:-🌆"अब बदलेगा मेरठ का मुकद्दर!"—योगी सरकार का 15,000 करोड़ का मास्टरप्लान, शहर बनेगा स्मार्ट, स्वच्छ और प्रेरणादायी
सुबह से बेसुध, पता नहीं जीवित भी है या नहीं
जानकारी के अनुसार, आज सुबह बेगम पुल मुख्य बाजार के डिवाइडर पर एक व्यक्ति लेटा हुआ मिला। उसकी हालत ऐसी थी कि यह भी स्पष्ट नहीं हो पा रहा था कि वह जीवित है या नहीं। स्थानीय नागरिक अरशद ने तत्काल पुलिस आपातकालीन सेवा 112 नंबर पर फोन कर सूचना दी और मदद की गुहार लगाई।
थानों की खींचतान में टलती रही मदद
अरशद की सूचना के बाद भी, घंटों तक कोई पुलिसकर्मी मौके पर नहीं पहुंचा और न ही अचेत पड़े व्यक्ति को उठाया गया। चौंकाने वाली बात यह है कि यह मामला थाना सदर और थाना लालकुर्ती की सीमा के बीच का होने के कारण उलझ गया। दोनों थानों ने इसे अपनी अधिकार क्षेत्र का मामला मानने से इनकार कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति घंटों तक वहीं धूप में पड़ा रहा।
अरशद ने इस पर गहरा रोष व्यक्त करते हुए कहा कि, "पुलिस के इस सीमा विवाद के कारण एक इंसान की जान की कीमत को तार-तार कर दिया गया है। सुबह से अभी तक किसी भी थाने ने उसे उठाया नहीं।" यह घटना न केवल पुलिस प्रशासन के ढुलमुल रवैये को दर्शाती है, बल्कि थानों के बीच तालमेल की कमी और मानव जीवन के प्रति उनकी संवेदनहीनता को भी उजागर करती है।
एक व्यस्त बाजार में, जहां सैकड़ों लोग आते-जाते हैं, वहां एक व्यक्ति का घंटों तक अचेत पड़ा रहना और पुलिस का सीमा विवाद में उलझा रहना, बेहद चिंताजनक है। इस घटना ने एक बार फिर साबित किया है कि कागजी कार्रवाई और क्षेत्राधिकार की खींचतान में कैसे मानवीय मूल्य और त्वरित सहायता की आवश्यकता को दरकिनार कर दिया जाता है।
क्या यह घटना पुलिस प्रशासन की नींद तोड़ेगी और भविष्य में ऐसे संवेदनशील मामलों में त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी?
