"वक्फ कानून के विरोध में बत्ती गुल: मुस्लिम समाज का 15 मिनट का शांतिपूर्ण ब्लैकआउट प्रदर्शन"

पर्सनल लॉ बोर्ड के एक आह्वान पर घरों और दुकानों की लाइटें बुझीं; 'धार्मिक संपत्तियों पर दखलंदाजी बर्दाश्त नहीं' - उलेमाओं ने दिया कड़ा संदेश
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लखनऊ/मेरठ/पश्चिमी उत्तर प्रदेश: बुधवार रात ठीक 9 बजे, उत्तर प्रदेश के कई शहरों और कस्बों में मुस्लिम बहुल इलाकों की रफ्तार जैसे थम सी गई। सड़कों पर रोशनी कम हो गई, घरों की खिड़कियों से आती पीली या सफेद लाइटें अचानक गायब हो गईं और दुकानों के जगमगाते बल्ब भी बुझ गए। यह कोई बिजली कटौती नहीं थी, बल्कि वक्फ कानून में प्रस्तावित संशोधनों के खिलाफ मुस्लिम समाज का एक अनूठा, शांतिपूर्ण और प्रतीकात्मक विरोध था, जिसे ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) के आह्वान पर अंजाम दिया गया।READ ALSO:-"मर्दानगी पर सवाल, मोहब्बत में बगावत: मेरठ में भाभी-देवर की लव स्टोरी ने तोड़े रिश्तों के बंधन"

 

पूरे पश्चिमी यूपी में दिखा 'ब्लैकआउट' का असर
यह 'बत्ती गुल' विरोध प्रदर्शन केवल एक या दो शहरों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसका व्यापक असर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ, शामली, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बिजनौर जैसे प्रमुख जिलों के साथ-साथ बुलंदशहर, बागपत और हापुड़ जैसे अन्य क्षेत्रों में भी दिखाई दिया। मेरठ शहर के इस्लामाबाद, अहमदनगर, जाकिर कॉलोनी, श्याम नगर, किदवई नगर, आशियाना कॉलोनी, खैरनगर, और ऐतिहासिक हाशिम पुरा जैसे घनी मुस्लिम आबादी वाले क्षेत्रों में रात 9 बजते ही लोगों ने स्वेच्छा से अपने घरों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों की लाइटें बंद कर दीं। अगले पंद्रह मिनट तक, यानी 9 बजकर 15 मिनट तक, इन इलाकों में एक तरह का 'ब्लैकआउट' रहा, जो नए वक्फ कानून के प्रति समुदाय की आपत्तियों को दर्शा रहा था।

 

AIMPLB का आह्वान और AIMIM का समर्थन
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड पिछले कुछ समय से वक्फ कानून 2025 में होने वाले संशोधनों का विरोध कर रहा है। बोर्ड का मानना है कि ये संशोधन मुस्लिम वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में अनावश्यक सरकारी हस्तक्षेप को बढ़ावा देंगे और धार्मिक स्वतंत्रता के सिद्धांतों के खिलाफ हैं। इसी विरोध अभियान के तहत, बोर्ड ने बुधवार रात 15 मिनट के लिए 'बत्ती गुल' यानी लाइट बंद रखने का आह्वान किया था, जिसका उद्देश्य सरकार तक समुदाय की चिंता और असहमति को शांतिपूर्ण तरीके से पहुंचाना था। असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली पार्टी AIMIM के कार्यकर्ताओं ने भी इस अभियान का समर्थन किया और मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में लोगों से लाइट बंद कर विरोध दर्ज कराने की अपील की।

 

'इस्लामी सिद्धांतों के खिलाफ है कानून', उलेमाओं की राय
इस 'ब्लैकआउट' विरोध के पीछे मुस्लिम समुदाय के प्रमुख उलेमाओं और नेताओं की स्पष्ट राय है। मेरठ के शहर काजी डॉ. जैनुस सालिकीन सिद्दीकी ने इस शांतिपूर्ण विरोध का समर्थन करते हुए कहा कि वक्फ एमेंडमेंट बिल 2025 के खिलाफ खामोशी से बत्ती गुल करके विरोध दर्ज कराया गया, और इसमें समुदाय के लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।

 

प्रख्यात इस्लामी विद्वान कारी शफीकुर्रहमान कासमी ने इस कानून को इस्लामी सिद्धांतों के सीधे तौर पर खिलाफ बताया। उन्होंने कहा कि वक्फ संपत्ति अल्लाह की राह में दान की गई संपत्ति है और इसका प्रबंधन इस्लामी शरिया के अनुसार होना चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह कानून मुस्लिम समुदाय के अधिकारों और उनकी धार्मिक संपत्तियों पर सरकारी नियंत्रण को बढ़ाएगा, जो अस्वीकार्य है। कारी कासमी ने इसे केवल एक समुदाय का मुद्दा नहीं, बल्कि पूरे राष्ट्र से जुड़ा मुद्दा बताया और दोहराया कि जब तक सरकार इस "काले कानून" को वापस नहीं लेती, उनका शांतिपूर्ण विरोध जारी रहेगा।

 

वक्फ कानून में प्रस्तावित कुछ संशोधनों में गैर-मुस्लिम सदस्यों को वक्फ बोर्ड में शामिल करने और वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में सरकारी निगरानी बढ़ाने जैसे प्रावधान शामिल हैं, जिन पर मुस्लिम संगठनों को आपत्ति है। उनका कहना है कि ये प्रावधान वक्फ के मूल उद्देश्य और स्वरूप को बदल देंगे।

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यह 15 मिनट का सांकेतिक 'ब्लैकआउट' विरोध इस बात का परिचायक था कि मुस्लिम समुदाय वक्फ कानून को लेकर गंभीर चिंताएं रखता है और अपनी बात रखने के लिए एकजुट है, भले ही उसका तरीका कितना भी सरल या प्रतीकात्मक क्यों न हो। उन्होंने इस 'बत्ती गुल' के जरिए सरकार को अपनी भावनाओं से अवगत कराने का एक स्पष्ट संदेश दिया है।

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