शिक्षा पर 'रिफंड' का करारा वार: हंसाते-हंसाते मैकाले के मॉडल को कटघरे में खड़ा किया, पूछा - डिग्री से पहले इंसान क्यों नहीं? दर्शक हुए विचारमग्न!

 धामपुर में मंचित फ्रिट्ज़ करिंथी का व्यंग्यात्मक नाटक, दर्शकों को सोचने पर किया विवश; 'डिग्री नहीं, नैतिक नागरिक बनाए शिक्षा' का दिया संदेश
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DHAMPUR
बिजनौर जिला प्रभारी अनिल कुमार शर्मा खबरी लाल मीडिया।धामपुर, [आज की तारीख] – क्या हमारी शिक्षा प्रणाली हमें केवल डिग्री और नौकरी का गुलाम बना रही है? क्या यह हमें नैतिक और विवेकशील नागरिक बना पा रही है? इन्हीं तीखे सवालों को मंच पर जीवंत किया फ्रिट्ज़ करिंथी के कालजयी व्यंग्यात्मक नाटक 'रिफंड' ने। धामपुर के श्री राम ग्रुप ऑफ़ कॉलेजेज एंड हॉस्पिटल में नाट्यदीप फाउंडेशन और उ.प्र. संगीत नाटक अकादमी की संयुक्त थिएटर कार्यशाला के समापन पर जय प्रकाश तिवारी के निर्देशन में मंचित इस नाटक ने दर्शकों को हंसाने के साथ-साथ शिक्षा के वास्तविक उद्देश्य पर गंभीरता से सोचने पर मजबूर कर दिया।READ ALSO:-मेरठ में 'लव जिहाद' का मामला: रोहित बनकर नदीम ने की शादी, सच सामने आते ही मारपीट और जबरन 'तलाक'! पुलिस ने दो को दबोचा

 

जब एक 'फेल' छात्र ने मांगी अपनी 'फीस वापसी'!
1938 में लिखे गए इस नाटक का केंद्रबिंदु वासेरकोफ़ नामक एक पूर्व छात्र है। वासेरकोफ़ अपने पुराने स्कूल में यह दावा करते हुए प्रवेश करता है कि उसने वहाँ से जो शिक्षा पाई, उससे वह अपने जीवन में कुछ भी हासिल नहीं कर सका। इसलिए, उसे अपनी पूरी शिक्षण शुल्क (फीस) वापस चाहिए! उसकी इस अनोखी और तार्किक मांग से शिक्षक भी असहज हो जाते हैं। नाटक का हास्यपूर्ण, फिर भी विचारोत्तेजक कथानक, दर्शकों को ठहाके लगाने के साथ-साथ यह सोचने पर भी विवश करता है कि क्या शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य व्यावसायिक सफलता है?

 

मैकाले की विरासत और शिक्षा का भटकता रास्ता
'रिफंड' नाटक ने स्पष्ट रूप से दर्शाया कि कैसे आज की शिक्षा प्रणाली केवल प्रमाणपत्र एकत्र करने और नौकरी के लिए तैयार करने तक सिमट गई है। नैतिकता, रचनात्मकता और सामाजिक जिम्मेदारी जैसे महत्वपूर्ण मूल्य इस प्रक्रिया से लगभग गायब हैं। यह स्थिति भारतीय संदर्भ में और भी अधिक प्रासंगिक हो जाती है, जब हम इसे लॉर्ड मैकाले द्वारा थोपे गए औपनिवेशिक शिक्षा मॉडल से जोड़ते हैं, जिसका मूल उद्देश्य केवल ब्रिटिश साम्राज्य के लिए 'क्लर्क' तैयार करना था, न कि स्वतंत्र सोच वाले नागरिक। नाटक ने इस ऐतिहासिक बोझ और उसके वर्तमान प्रभावों पर तीखा व्यंग्य किया।

 


सिर्फ मनोरंजन नहीं, समाज के लिए एक 'आईना'
'रिफंड' सिर्फ एक नाटकीय प्रस्तुति नहीं थी; यह वर्तमान और ऐतिहासिक शिक्षा प्रणालियों पर एक शक्तिशाली वैचारिक हस्तक्षेप था। नाट्यदीप फाउंडेशन द्वारा प्रस्तुत इस नाटक ने सशक्त संदेश दिया कि शिक्षा को केवल डिग्री और व्यावसायिक सफलता तक सीमित नहीं करना चाहिए। बल्कि, इसे ऐसा माध्यम बनाना चाहिए जो समाज को नैतिक, विवेकशील और संवेदनशील नागरिक प्रदान कर सके।

 

नाटक में प्रिंसिपल की भूमिका में विशाखा पाल, चपरासी प्रिया राठौर, वासरकॉफ के रूप में अफ़्शा तबस्सुम, हिस्ट्री टीचर कामिनी पाल, फिजिक्स टीचर के. के. पीपल, वरिष्ठ टीचर तिलक कुमार सिंह, और मैथ टीचर अजय कुमार के अभिनय ने दर्शकों को खूब गुदगुदाया। इन किरदारों की बौद्धिक टकराहट ने हास्य के साथ-साथ शिक्षा व्यवस्था की गंभीर आलोचना भी प्रस्तुत की। मंच पार्श्व में दृश्यबंध परिकल्पना मनस्वी राजेंद्र, मंच सामग्री लक्ष्मी, वेशभूषा कामिनी पाल, संगीत परिकल्पना आर्यन खरबन्दा और प्रकाश अनुराग का रहा।

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दर्शकों का मंथन: 'नई शिक्षा नीति के लिए चेतावनी'
नाटक की प्रस्तुति के बाद दर्शकों की प्रतिक्रियाएं बेहद विचारोत्तेजक थीं। उपस्थित शिक्षकों, छात्रों और अभिभावकों ने माना कि 'रिफंड' ने उन्हें शिक्षा की वास्तविक भूमिका पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित किया। कई दर्शकों ने तो यह भी कहा कि 'रिफंड' जैसे नाटक नई शिक्षा नीति की सफलता के लिए एक चेतावनी की तरह हैं। उनका मानना था कि अगर मूल्यनिष्ठा और भारतीय ज्ञान परंपरा को शिक्षा में पुनः स्थापित नहीं किया गया, तो शिक्षा केवल एक औपचारिक प्रक्रिया बनकर रह जाएगी, जिसका समाज में कोई गहरा प्रभाव नहीं होगा।

 

कार्यक्रम का उद्घाटन मुख्य अतिथि पवन चौहान, इं. अनिल कुमार पाल, ग्राम प्रधान नरेंद्र सिंह, विमलेश कुमारी, डॉ. दीपसौरभ सिंह, डॉ. आदित्य अग्रवाल, और डॉ. एन. पी. सिंह (चेयरमैन, श्री राम ग्रुप ऑफ़ कॉलेज) ने नटेश्वर के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन कर किया। पूरे कार्यक्रम का कुशल संचालन डॉ. राजेंद्र चौधरी ने किया।
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