बिजनौर : शेरकोट प्राथमिक विद्यालय में बच्चों से पढ़ाई की जगह कड़ाके की ठंड में धुलवाए बर्तन, जानिए क्या है मामला?

 यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि बिजनौर के एक प्राथमिक विद्यालय में बच्चों से बर्तन धुलवाया जा रहा है। यह न केवल बच्चों के अधिकारों का हनन है, बल्कि शिक्षा के मूल सिद्धांतों के भी खिलाफ है।
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SHERKOT
बिजनौर जिले में शेरकोट के एक प्राथमिक विद्यालय में बच्चों से पढ़ाई से ज्यादा बर्तन साफ ​​करवाए जा रहे हैं। जब हमारे संवाददाता ने स्कूल के शिक्षक से कड़ाके की ठंड में बच्चों से यह काम करवाने पर सवाल किया तो उन्होंने कहा, "बच्चे बर्तन नहीं धोएंगे तो क्या हम धोएंगे?" अब सवाल उठता है कि ऐसे कैसे पढ़ेगा इंडिया, कैसे आगे बढ़ेगा इंडिया।READ ALSO:-मेरठ : भीषण सर्दी और कोहरे के चलते आठवीं तक के स्कूल 18 जनवरी तक बंद, जिलाधिकारी ने जारी किया आदेश

 

यह मामला बिजनौर के शेरकोट थाना क्षेत्र के अल्हैपुर ब्लॉक के शेरकोट द्वितीय प्राथमिक विद्यालय का है, जहां 117 बच्चों में से मात्र 10-12 बच्चे ही ठंड के कारण स्कूल आ रहे हैं। इन मासूम बच्चों से खुले में ठंडे पानी से बर्तन धुलवाए जा रहे हैं। जब इस पर प्रधानाध्यापक फातिमा परवीन और सहायक अध्यापक नरेंद्र से सवाल किया गया तो वे भड़क गए और बोले, "बच्चे बर्तन नहीं धोएंगे तो क्या हम धोएंगे?"

 


इस मामले में कई गंभीर सवाल उठते हैं:
  • शिक्षा का अधिकार: क्या बच्चों को पढ़ने के बजाय बर्तन धोने के लिए मजबूर किया जाना शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन नहीं है?
  • शारीरिक श्रम: क्या इतनी कम उम्र के बच्चों से शारीरिक श्रम करवाना उचित है, खासकर कड़ाके की ठंड में?
  • शिक्षकों की जिम्मेदारी: क्या शिक्षकों का काम केवल बच्चों को पढ़ाना ही नहीं बल्कि उनकी देखभाल करना भी है?
  • शिक्षा विभाग की भूमिका: क्या शिक्षा विभाग इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए कोई कदम उठा रहा है?

 

इस मामले में क्या किया जाना चाहिए:
  • तत्काल कार्रवाई: शिक्षा विभाग को इस मामले में तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए और दोषी शिक्षकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।
  • जांच: इस मामले की पूरी तरह से जांच होनी चाहिए ताकि यह पता चल सके कि यह एक अकेली घटना है या इस तरह की घटनाएं पहले भी होती रही हैं।
  • जागरूकता: लोगों को बच्चों के अधिकारों के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए।
  • बच्चों की सुरक्षा: बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए।

 

यह एक गंभीर मामला है और इस पर सभी को गौर करना चाहिए। बच्चों को पढ़ने और खेलने का अधिकार है, न कि बर्तन धोने का। अब सवाल उठता है कि कोई भी अभिभावक अपने बच्चों को ऐसे सरकारी स्कूलों में क्यों भेजेगा?

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